24 जुलाई 2009

बंधन

सूरज की लगाम होती है दिन की बेडियों के साथ

चाँद और सितारे गुलाम है रात के अंधेरोंके हाथ

आजाद है हमेशासे रौशनी जिसे बंधन नहीं कोई

वो रात हो या दिन सूरज- चाँद- सितारोंसे मिलती है ,

जो घने बादलोंको चीरकर भी हम तक पहुंचती है ....

रोशन शमाएँ होती है ख़ुद को जलाकर

अंधेरों को चीरकर जहाँको रोशन कर देती है .....

4 टिप्‍पणियां:

  1. जो घने बादलोंको चीरकर भी हम तक पहुंचती है ....

    रोशन शमाएँ होती है ख़ुद को जलाकर

    अंधेरों को चीरकर जहाँको रोशन कर देती है
    baht khub

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिती जी आपकी रचनाओं में भाव बहुत सुन्दर होते हैं मगर लय की कमी खटकती हैं.. इस बात का मैने पहले भी जिक्र किया था. आप शायद लिखते ही पोस्ट कर देती हैं.. लिख कर उसे कुछ समय अपने पास रखे और उसमें सोच कर शब्दों को लय के हिसाब से बिठाने की कोशिश कीजिये.. आपकी रचना और निखर जायेगी..
    इसे आलोचना ना समझियेगा... सुझाव मात्र है.

    जवाब देंहटाएं

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