21 जून 2009

हैप्पी फाधर'स डे .......

आज जून महीने का तीसरा रविवार ....पाश्चात्य असर के नीचे हम भी आज के दिवस अब फाधर'स डे मनाते है ...

फाधर, पिताजी ,बापू , डेड ,डेडी,पो, पा,पोप्स ,पापा ...हमारी जिंदगी के अभिन्न अंग तो है ही लेकिन ये किरदार से ज्यादा तवज्जो हमने माँ ,और मातृत्व को हमेशा दी है और ये ग़लत भी नहीं ...पर आइये आज हमारे पापा को मिलते है ...

हमारे वजूद में घुले है ...सुबह में काम पर जाने वाले ...टिफिन लेकर ,शाम को घर लौटने वाले हमारे पापा से ज्यादा हमेशा घर में रहने वाली नर्म दिल माँ के पास हम ज्यादा रहे है ..उसने हमें ज्यादा प्यार दिया है ..वह हमें डांटती भी है पुचकारती भी है ...लेकिन कभी बाप की नजर से देखो ...अपने परिवार की हर खुशियों को लाने के लिए वह सुबह से ही इस दुनिया से उलज़ने निकल जाते है ...माँ उनकी कमाई से घर चलाती है ...हमारी हर छोटी बड़ी चीजों के लिए ये पापा पुरे दिन महीने सालों से खून पसीना बहाते है ...हमारी हर सुविधा के पीछे उनका योगदान उतना ही होता है ..लेकिन इन्होने कभी ये जताया नहीं ...हमारे लिए उनके दिल में कितनी चिंता है ये जताना उन्हें कभी आता ही नहीं ...वो जब हम सो जाते है तो हमारे सर में बाल में हाथ घुमाते तो है पर उन्हें लोरी गाना नहीं आती ....पर हमें वो चाहते है उसके सबूत वो दे नहीं पाते .....वो ये सब काम माँ के सुपुर्द करके उसे सब वाह वाही बटोरने देते है ......हमारे माँ बाप के बीच पति और पत्नी के रिश्ते को कभी हम नहीं सोचते ..जब संतान का जन्म होता है तबसे माँ का पुरा ध्यान जाने अनजाने में अपनी संतान के प्रति ही बंट जाता है ...कभी कभी तो वह अपने पतिके प्रति भी बिल्कुल बेपरवाह बन जाती है .....उनके निजी रिश्तों में बारीक दुरी भी आ जाती है पर ये पिताजी इस बात को बिल्कुल खामोशी से जी जाते है ...अपने संतानोंमें घिरी पत्नी के समय पर क्या उन्होंने कभी हक़ जताया है ?......याद है आपको लक्ष्मण जब राम और सीता के साथ वन में गए तो उर्मिला चौदह साल अकेले ही रही थी बिना शिकायत किए ....और हमारे पिताजी हमारी हर खुशी के लिए ऐसे ही रहते है ...सोच कर देखना ऐसे कई पल आपको याद आ ही जायेंगे .....

दुनिया में सिर्फ़ लाड प्यार ही होता तो हमारी गलतियों को सुधारता कौन ? हमें डांटता कौन ? कभी मारता कौन ? हमें अच्छा इंसान बनाता कौन ? ये कठिन कार्यभार हमारे पापा सँभालते है ...हमारी ही भलाई के लिए ये सब उन्हें अपने प्यार को दिल में छुपा कर कठोर बनना पड़ता है ...हमें बचपन में जो छवि कठोर नजर आती है वह क्यों ऐसी थी वह हमें माँ बाप बनकर शायद समज में आती है ....ये नारियल की तरह होते है ...ऊपर से कठोर अन्दर से पानी मलाई की तरह कोमल .....ये वो बरगद का वृक्ष है जिनकी छाँव में हम हमेशा महफूज़ रहते है ...सब परेशानियों से वह हमको दूर रखते है ...ख़ुद उससे झुझते है पर कभी हम तक उनकी भनक तक पड़ने नहीं देते ...ऐसे होते है वज्र से भी कठोर और फूल से भी कोमल हमारे पापा .........

मेरे पापा की बात के बगैर ये पोस्ट अधूरी रहेगी ....

पिताजीकी पुश्तैनी विरासत तो बेटे को दी जाती है ...जायदाद ,मिलकियत सब ...पर मुझे मेरे पापा से मिली है ये कलम विरासत में ...मेरे पापा लिखते बहुत ही अच्छा है ...उनके हस्ताक्षर बिल्कुल मोती के दानों की तरह है ..उन्हें हमेशा मेरे हस्ताक्षर बहुत बिगडे लगे है ...मेरे पापा को मेरा ये लिखना बहुत ही खुशी देता है ...सब उन्हें कहते है आपकी विरासत आपकी बेटीने बखूबी संभाली है ...तब मुझे अपने पापा की बेटी कहलाने में गर्व महसूस होता है ...

एक याद :

मुझे बी कॉम के बाद अनुस्नातक की पदवी पानी थी ..मैं जाकर फॉर्म ले आई ...उस दिन पापा की सबसे ज्यादा दंत खायी थी ...खूब रोई थी ...उन्हें अब मेरी शादी की चिंता थी ...तू इंतना पढेगी तो इतना पढ़ा लिखा लड़का कैसे मिलेगा ??? पर मैं जिद्दी थी ...मैंने दो साल पढ़कर ये पदवी हासिल कर ही ली ....जब एम् कॉम फाइनल का रिजल्ट आया तब मैं अहमदाबाद में थी ...मेरी करियर में पहली बार मेरे पापा ख़ुद कोलेज गए ..मेरा रिजल्ट लिया और स्टेशन पर जाकर आर एम् एस से मुझे पोस्ट कार्ड लिखा ....उसकी ये लाइन मुझे अब भी याद है ...बेटी आँख में आंसू के साथ ये ख़त लिख रहा हूँ ...तू पुरे खानदान में पहली अनुस्नातक बन गई ....ऐसे होते है पापा ...मैं हमेशा फर्स्ट डिविजन में पास हुई थी ...पर मैनेजमेंट जैसे विषय को चुना था जो उस वक्त बिल्कुल नया था ...१९८३ में ..हमारी कोलेज में ....उसमे मेरी दूसरी डिविजन आई ...तो भइया पापा से बोले इस वक्त दूसरी ?...

तब पापा ने कहा बेटे गुजराती माध्यम से पढने के बाद अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना और बिना ट्यूशन ,क्लास किए स्कोलर शिप पर अपनी पढ़ाई पुरी करना ....मेरी बेटीने बड़ी महेनत की है ये तुम्हे अंदाज नहीं है ....

पापा सिर्फ़ आज ही नहीं जब तक मेरी आखरी साँस है तब तक आप मुझमे जिन्दा है .......

4 टिप्‍पणियां:

  1. आप पिता जी की विरासत की वास्तविक हकदार है, यह आपनें लेखन से सिद्ध किया है। हिन्दी भाषी न होते हुये भी आप हिन्दी में अच्छा लिखती हैं। बधाई।

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  2. पापा तो पापा है!!!
    पापा प्यार तो मॉं जितना ही करते है पर शायद अभिव्यक्त नहीं करते..

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  3. bahut hee dilkash andaaj mein likhee gayee aur aaj ke din mere dwara padhee gayee kuchh behtareen poston mein se ek.......bahut khoob...

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